Monday, January 25, 2016

"चाहत" ( डॉ. चंचल भसीन )

    "चाहत"
तेरे दिल में रहकर भी क्यों तन्हाई में रहूँ,
मैंने तो तुम्हें चाहा 
तू वायदों का बादशाह 
तेरे वायदे फिसलते पत्थरों जैसे.....!
तेरे अपने कहे 
अक्षरों को ही टिकने नहीं देते।
वो फिसलते मोहब्बत के 
अक्षरों की पीड़ा 
तू न जाने कितना दर्द देती है?
छीन ली आँखें, 
कर दिया अंधा,
जुबां से गूँगा, 
कानों से बहरा
दिमाग़ की हरकत बंद,
अधमरी सी देह 
न जाने फिर भी क्यों?
उम्मीद लिए 
रास्ते निहारती,
सम्पूर्णता पाने की चाह की तड़प 
मुझे ज़िंदा रखे है।
   ( डॉ. चंचल भसीन )





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