Friday, September 16, 2016

ख़ामोशी- डॉ. चंचल भसीन

आओ

आज इस ख़ामोशी को 

तोड़कर 

उस मोहब्बत--जां में 

चलें

यहाँ बातें तुम करो

मैं सुनूँ

और

कुछ बातें मैं करूँ 

और 

तुम सुनो!

शब्दों के गूढ़ार्थों को

समझे,

उसमें समाएँ,

हो गिला किसी बात का

फ़ुरसत के लम्हों को 

सँवारे,

बे दखल होकर!

आत्माओं को तृप्त करें 

रहे कोई तृष्णा 

पुर्नजन्म की!

(डॉ. चंचल भसीन)

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