आओ,
आज इस ख़ामोशी को
तोड़कर
उस मोहब्बत-ए-जां में
चलें
यहाँ बातें तुम करो
मैं सुनूँ,
और
कुछ बातें मैं करूँ
और
तुम सुनो!
शब्दों के गूढ़ार्थों को
समझे,
उसमें समाएँ,
न हो गिला किसी बात का
फ़ुरसत के लम्हों को
सँवारे,
बे दखल होकर!
आत्माओं को तृप्त करें
न रहे कोई तृष्णा
पुर्नजन्म की!
(डॉ. चंचल भसीन)
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