Tuesday, December 8, 2015

"क्यों" ( डॉ. चंचल भसीन )

क्यों कभी- कभी मुझे 
अपने आप का ही एहसास नहीं होता 
दिल मेरा नहीं 
आँखे मेरी नहीं 
जुबां मेरी नहीं 
सांसें मेरी नहीं 
धड़कन मेरी नहीं 
रूह मेरी नहीं 
फिर भी ज़िंदा हूँ क्यों।
     ( डॉ. चंचल भसीन )

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