Thursday, September 26, 2013

लघु कथा--"सीख" (डॉ. चंचल भसीन)

                                                         लघु कथा

"सीख"- कई बार घर के बड़े-बजुर्गों द्वारा दी गई हिदायतें समय बीत जाने पर याद आती हैं कि समय होते उन पर अमल क्यों नहीं किया। बाद में उस का पश्चाताप होता रहता । ऐसे ही मुझे भी याद हैं जब हम छोटे-छोटे हुआ करते थे तो छोटी-छोटी बातों पर लड़ना शुरू कार देते थे और तब हमारी माता जी हमें ढ़ांटते और समझाते थे कि किसी भी बात पर झगड़ा शुरू करने से पहले उसकी तह तक जाया करो। ऐसे ही लड़ना शुरू कर देते हो । तब हमे मिसाल दे कर समझाती थी जो मुझे आज भी याद है।
एक परिवार में पति-पत्नी रहते थे और उनकी आपस में बहुत ज्यादा बनती थी पर यहबात पडोसी को बिल्कुल भी नही सुहाती थी। वह बड़ा परेशान रहता कि इन की लड़ाई कैसे लगाई जाए जिससे इन के घर में भी झगड़ा होता रहे। इनकी आपस में न बने। वह दिन-रात इसी चक्कर में रहता। उसे बेचैनी रहने लगी। इक दिन वह पंडित के पास गया और कहने लगा- पंडित जी मुझे बहुत बेचैनी रहती है। कुछ उपाए बताएं। पंडित-किस कारण आप को बेचैनी है?पड़ोसी- क्योंकि मेरे पड़ोसी परिवार की आपस में बहुत बनती है।मुझे एक आंख नहीं भाते। इसलिए मै बेचैन रहता हू
पंडित-बच्चा परेशान और बेचैन होने वाली कोई बात नहीं। मै तुझे कुछ सुनाता हूँ और आप उन दोनों को अलग अलग करके सुनाना। तो फिर देखना क्या मजा आता है। आप कह रहे हो वह अलग नहीं होते उन्होंने एक-दूसरे की परछाई भी नहीं लेनी।पड़ोसी-ठीक, पंडित जी।
उसने दोनों को अलग-अलग करके अपनी बात सुनाना शुरू की।
पहले वह औरत के पास गया और कहने लगा-भाभी आपसे एक बात पूछनी है पर मुझे कुछ खौफ आ रहा है कि आप नराज न हो जाए। पर है आप के भले की। उसके जोर डालने पर सुनाने लगा-भाभी मैंने सुना है कि भाई जी पिछले जन्म में गधे थे और वह कुम्हार के घर पर नमक ढोने का काम करते थे। पर अगर आप को यकीन नही है तो रात को जब सोए गए तो उन के जिस्म को चाट कर देख लेना विश्बास हो जाएगा। मैंने जब सुना तो मुझे बहुत ही बुरा लगा। आप इतनी पूजा-पाठी और भाई साहिब पिछले जन्म में गधे थे। इतनी बात कह कर चला गया और औरत को यह सब सुन कर परेशानी होने लगी कि कब रात हो और वह सब कर के देखे। ऐसे ही उसके पति के पास गया। और कहने लगा भाई साहिब मैंने एक बात करनी है आपसे, मुझे अच्छा नही लग रहा। अगर आप इजाजत दो तो आप को सुनाऊँ? इसमें इजाजत की कोई जरूरत नही है आप सुनाओ।
पड़ोसी- मैंने सुना है कि आप पिछले जन्म में ऋषि-मुनि थे और आप की धर्मपत्नी कुतिया थी । आपकी शादी का जोड़ बड़ा ही बेमेल है और कुछ समय के बाद उसने आपको खा जाना है। अगर आप को यकींन नही तो रात को किसी दिन जाग कर देख लेना। क्या लक्ष्ण है उसके?
घर आकर उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था कि क्या करे? पत्नी की ओर देखने का मन नही कर रहा था क्योंकि तब वह अपने आप को बड़ा ऋषि-मुनि और पत्नी को एक जानवर (कुतिया ) समझ रहा था। ऐसे ही उसकी पत्नी के मन में गुस्से का उफान उबल रहा था। जैसे ही रात हुई तो पति-पत्नी सोने लगे पर नींद कहाँ ? लगे करवटें बदलने और सोने का पखंड करने। जब पत्नी को लगा कि उसके पति सो गये है तो वह उठी और लगी चाटने तो उसके पति ने उसकी बाजू पकड़ ली और कहने लगा मुझे पक्का यकीन हो गया कि आप पिछले जन्म में कुतिया ही थी। मुझे पड़ोसी ने बताया था सच ही है। जैसे ही उसके मुहं से पड़ोसी का नाम सुना तो झट से बोली तो आप को भी उसी ने बताया था, मुझे भी तो आपके बारे में उसी ने कहा कि पिछले जन्म में गधे थे । दोनों दंग रह जाते है कि कैसे उन्हें मूर्ख बनाया गया।
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                                                    _डॉ. चंचल भसीन
                                                                 (जम्मू) 

Sunday, August 18, 2013

ञ्यांनें लेई --सिक्खमत

                                                              सिक्खमत                                                                                                                     केईँ बारी घरै दे बड्डेँ-सेआनें आसेआ दिती गेदी सिक्खमत जां हिदायतां समेँ बीती जाने पर चेता औँदियां न जे बेल्ला होँदे होई उ'नेँगी की नेईँ गंढी बनेआ। ओह् असेँगी सतादियां रौंह्दियां न। इ'यां गै मिगी पक्का चेता ऎ जे जिसलै अस निक्के-निक्के हे ते आपूं-चें मासा-मासा गल्ला पर लडना शुरू करी ओड़दे हे तां भाभी ( मां जी ) होर असेँगी द्रडंदियां हियां ते समझादियां जे कोई बी गल्लै पर झगडा करने थमां पैह्ले उसदी तैह् तगर जा करो।इ'यां गै लडना शुरू करी ओड़दे ओ। फ्हिरी असेँगी मसाल देइयै समझादियां हियां जिँ'दे च किश अजेँ बी मिँ चेता न।जि'यां
          इक घरै च पति-पत्नी दी आपूं च बडी ज्यादा बनतर ही ते उंदे गुआंढी गी एह् गल्ल रूआल बी चंगी नेईँ ही लगदी। ओह् बड़ा परेशान रौह्न लगा जे इंदी लड़ाई कि'यां लुआई जा जिस कन्नै इंदे घर बी कल-कलाऽ पेई दी र'वै ते इंदी आपूं चेँ नेईँ बनै। ओह् दिनै-रातीँ इस जुगाड़ च लगेआ रौँह्दा। उसी बेचैनी जनेही रौह्न लगी पेई इक ध्याड़े ओह् पंडित कोल गेआ ते आक्खन लगा-पंडित जी मिगी बड़ी बेचैनी रौँह्दी ऎ। किश उपाऽ दस्सो।
         पंडित-किस कारण तुसेँगी बेचैनी ऎ?
गुआंढी-इस कारण जे मेरे गुआंढियेँ दी आपूं-चें बड़ी बनतर ऎ। ओह् मेरी अक्खी च रड़कदे न जिसकरी आंऊ बेचैन रौह्ना।
         पंडित-बच्चा परेशान ते बेचैन होने आह्ली कोई गल्ल नेईँ। मेँ तुगी सनाना ते तूं उ'नेँगी बक्ख-बक्ख करी सनाया। ते फ्ही दिक्खेआ, केह् नजारा बज्जदा ऎ तूं आक्खा करना ऎ जे
ओह् बक्ख नेईँ होंदे उ'नेँ इक-दूए दा परछामां बी नेईँ लैना।
गुआंढी-अच्छा पंडित जी।
         उ'न्न दौनेँ गी बक्ख- बक्ख करियै अपनी गल्ल सनाना शुरू कीती। पैह्ले ओह् जनानी कोल गेआ ते आक्खन लगा-भाभी तुसेँगी इक गल्ल पुच्छनी ही, पर मिगी किश खौफ आवै दा ऎ जे तुस नराज नेईँ होई जाओ। पर है तुंदे गै भले आह्ली ऎ। ओह्दे जोर पाने पर लगा आक्खन-भाभी मेँ सुनेआ जे भ्रा होर पिछले जरमै च गधे (खोते) हे ते ओह् घमेआरेँ दे घर लून ढौँदे हे। पर जेकर तुसेँगी जकीन नेईँ ऎ तां रातीँ'लै जिसलै सोँदे न तां तुस आपूं गै उंदे जिस्मै गी चटि्टयै दिक्खी लैएओ पर जिसलै मेँ सुनेआ तां मिगी बड़ा गै बुरा लग्गेआ जे तुस इ'न्नियां पूजा-पाठी ते भ्रा होर पिछले जरमै च गधे हे।इ'न्नी गल्ल आक्खिये ते ओह् चली गेआ पर उस जनानी गी अग्ग टोर लग्गी गेई जे केह्डी घड़ी रात पवै ते ओह् एह् सब्भ करियै दिक्खै। इ'यां गै ओह् ओह्दे घरैआह्ले कोल बी गेआ ते आक्खन लगा भ्रा जी मेँ इकगल्ल ऎ पर मिगी किश चंगा नेईँ लग्गा दा, तुस इजाजत देओ तां तुसेँगी सनाऽ।
        भला इजाजत दी केह् लोड़ ऎ।सनाओ तुस।
गुआंढी-मिँ सुनेआ जे तुस पिछले जरम च रिशी-मुनी हे ते तुंदे घरैआह्ली कुत्ती ही। एह् तुंदे व्याह् दा जोड बडा गै बेमेल ऎ।कीजे किश समां पाइयै उ'न्न तुसेँगी दलकी खाना ऎ। नेईँ जकीन तां रातीँ'लै कुसै ध्याडै जागियै दिक्खेओ जे केह् लच्छन न नुआडे।
         घर आइयै उसी किश सुज्झै नेईँ जे केह् करै, घरैआह्ली पासै दिक्खने दा मन नेईँ करै कीजे उसलै ओह् अपने-आपै गी इक बड्डा रिशी- मुनी मन्नै दा हा ते घरैआह्ली गी इक जानवर। इ'यां गै ओह्दी घरैआह्ली दे मनै च खोह्दल पेदी ही। जि'यां रात पेई ते दोऎ सोन लगे तां नीदर कुत्थै, लगी पे सोने दे पेखन करन। इ'यां घरैआह्ली ने जिसलै सोचेआ जे ओह् सेई गेआ तां उट्ठियै जि'यां उसी चट्टन लगी ओह्दे घरैआह्ले ने उसदी बाह् पकडी लेई ते आक्खन लगा जे अज्ज मिगी पक्का जकीन होई गेआ जे तूं पिछले जरम च कुत्ती ही ते तूं मिगी समां पाइयै दलकी खाना हा। गुआंढी सच्च गै गला दा हा। जि'यां उसदे मूहां ओह्दा नां सुनेआ तां आक्खन लगी जे मिगी बी ते तुंदे आस्तै आक्खेआ हा जे तुस पिछले जरम च गधे हे। इ'यां उसगी पगडियै मारदे न।बच्चो तां गै आक्खदे न जे कुसै दी बी गल्ल सुनियै तौले फैसला नेईँ करी लैना चाहिदा बल्के उसी शैल करी बचारियै कुसै नतीजे पर पुज्जना चाहिदा ऎ।
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Thursday, August 15, 2013

                                                                                                                                                                                                                               Happy Independence Day                                                                                                                                                                                                                               

Sunday, August 4, 2013

"सोचें दा सरलाऽ" मेरी नजर च-डॉ चंचल भसीन

                "सोचें दा सरलाऽ" मेरी नजरी च
                                 डॉ . चंचल भसीन
     डोगरी साहित्य च कुंडलियेँ दा पैह्ला संग्रैह्‍ लिखने दा श्रेय 'पूर्ण चंद बडगोत्रा' होरें गी जंदा ऎ जिँदे सोचे दा सरलाऽ संग्रैह्‍ च कोतरा सौ (101) कुंडलियां न जेह्ड़ियां समाजै दे हर विशेँ गी छूंह्दियाँ न। लगदा ऎ जे बडगोत्रा' होरें अपने सभनेँ तजरबेँ गी एक लड़ी च परोइयै पाठकेँ आस्तै एह् सौगात पेश कीती दी ऎ।संग्रैह्‍ दे शीर्शक थमां गै लगदा ऎ जे सोचां कवि दे अंदर इ'यां सरलाऽ दियां हियां, जि'यां कोई जख्म जिसलै पाक्कू कन्नै भरोची जंदा ऎ तां ओह् टकाई नेईं लैन दिँदा जिसलै तगर ओह्दा लाज नेईँ कीता जा। इ'यां  गै लगदा कवि दे मनै च सुरकने आह्ले दुक्ख-सुक्ख जेह्डे उ'नेँ भोगे-भाले दे न ओह् तजरबेँ, ओह्दी सोचेँ च सरलाऽ दे हे। जेह्डे उ'नेँ कुंडलियेँ दे राहेँ पाठकेँ सामने पुजाई दित्ते न।कोई बी ऎसा विशे नेईँ ऎ जेह्दी नब्ज कवि ने नेईँ पकड़ी दी ऎ। कुंडलियेँ दा विशे ऊ'आं ते उपदेशात्मक होँदा ऎ पर इस संग्रैह् च असेँ गी सभनेँ विशेँ कन्नै सरबन्धत कुंडलियां मिलदियां न, जि'यां समाजक, राजनीतिक, वनस्पतियेँ, पक्खरू-पखेरूयेँ, रूत्तेँ-ब्हारेँ, पर्व-ध्यारेँ आदि। इंदेँ थमां पैह्ले बी किश कवियेँ इस विधा च हत्थ अजमाए दे न पर कुसै बी कवि दा कुंडलियेँ दा संग्रैह् पाठकेँ तगर नेईँ पुज्जा। टामीँ-टामियां कुंडलियां अजेँ बी छपदियां रौह्दियां न।
      'पूर्ण चंद बडगोत्रा' होरें अपने  सोचे दा सरलाऽ संग्रैह्‍ दी पैह्ली कंडली उस परमात्मा गी समर्पित कीती दी ऎ जेह्ड़ा सभनेँ दा पालन करदा ऎ जिसदे इशारे बिजन स्रिश्टी दा एक पता बी नेईँ हिलदा ते नां गै कोई शैह् ओह्दी इजाजत दे बगैर जीऽ सकदी ऎ। जेह्डे उस गी सिमरदे न उंदे घर अरबां-खरबां रौँह्दियां न। जि'यां:-
                   सब्भै अक्खी मूंदरी, नित्त भजन भगवान,  
                   मनै बसाई मूरती, रज्जी दर्शन पा'न।
                   रज्जी दर्शन पा'न, प्रभु दे चौह्ने कूटेँ,
                   भात-सभांते फुल्ल, अमर-फल लडके बूह्टेँ।
                   अमरत तुल्ले नीर, बगै दे सज्जै-खब्बै,
                    सब ओह्दे परमान, नुआंदे सिर तां सब्भै।
                                                  (सफा-1)
    इ'यां गै कवि इक होर कुंडली च आक्खदा ऎ जे माह्नू सारी उमर चूं-चलाकी करदा ऎ पर पापेँ दा चेता जिसलै सरलांदा ऎ तां उसदा इस दुनिया च जीना मुश्कल होई जंदा ऎ। ओह् मंदरेँ-मसीतेँ च बत्हेरी पूजा-पाठ करदा ऎ पर ओह्दी कोई पेश नेईँ चलदी। फ्ही ओह्दे पापेँ दा नबेडा उसलै गै होँदा जिसलै ओह् पापेँ दा फल भोगी लैँदा ऎ।जि'यां:-
                     पापेँ दा चेता जदूं, सोचेँ च सरलाऽ,
                     खंदा रुक्की-रुक्कियै, बनी जा पच्छोता,
                     बनी जा पच्छोता, दान तां करै बत्हेरे,
                     बाले मंदर जोत, शिवेँ दे स'ञ-सवेरे।
                      नांऽ दिया सिलां-लुआऽ, पराह्चित संतापेँ दा,
                     पच्छोताऽ पर मिटै, भोगियै फल पापेँ दा।
                                               (सफा-17)
   इंसान अज्ज दे दौर च इन्ना मतलबी होई गेदा ऎ जे उसी कुसै कन्नै बी हिरख नेईँ ऎ। इक्कै घरै दे जीवेँ कन्नै बी धोखा, छल-कपट करने थमां पिच्छेँ नेईँ रौँह्दा। ओह् सब्भ रिश्ते-नातेँ गी भुल्लियै रिश्ते च फिक्क पाई लैँदा ऎ। जि'यां:-
                   इक्क घरै दे जीव फ्ही, बक्क-बक्खरी सार, 
          रौँह्दे थूरे-ईँगरे, बुद्धिमान-गुआर।
                    बुद्धिमान-गुआर, भुलाइयै हानी-लाभ,
                    करन निरंतर हेर, पूरने बिसले ख्वाव।
                    ऎवेँ समां मुहान, पा'न रिश्ते च फिक्क ,
                   सब्भै होन खुआर,बारि-बारि इक्क-इक्क।
                                                  (सफा-37)
      इस भ्रश्ट समाजै पर कवि ने व्यंग कीते दा ऎ जे कोई बी हक्क जां इंसाफ अड़े बगैर नेईँ मिली सकदा। दफ्तरेँ च होने आह्ली लोकेँ कन्नै बदसलूकी दी अकासी कुंडलियेँ च कीती दी ऎ जे लोकेँ दियां फाइलां विजन वजह गै दबाई दित्ती जंदियां न जद् तगर उंदी तली पर मूहं दखाई नेईँ दित्ती जंदी तद् तगर उंदा कम्म नेईँ उस्सरी सकदा।
                       काज निँ सौरै अडे बिन, नां गै बद्धै-बास,
                       होऎ भाएं आम ओ, भाए कोई खास,
            भाए कोई खास, दडी जा 'फायल' गुट्ठा,
                        निकलै कदेँ निँ बाहर, बिला-शक लडकै पुट्ठा
                        पवै डं'बनी तली, जां मूहं दखाई रवाज,
                       लैन खूसियै लग्ग, होऎ ना होऎ काज।
                                                          (सफा-13)
    'बडगोत्रा' हुंदा मन्नना ऎ जे जो ईमानदारी दी खन्नी-लप्पर च संदोख-अनन्द ऎ। ओह् रिश्वतखोरी दे गडूछेँ च नेईँ ऎ। धोखेघडी कन्नै कठेरी दी दौलत पचदी नेईँ ऎ। एह् इक-न-इक ध्याडेँ सूद समेत ज़रूर गै चकानी पौंदी ऎ। ओह् चाहे जिस रूपै च मर्जी होग। इस करियै  खन्नी-लप्पर च गै जकीन करना चाहिदा ऎ:-
                 खन्नी-लप्पर खाइयै, मान तरक्कडी जोख,
                 रिश्वत जैह्‍र बरोबरी, बार-बार एह् घोख।
                 बार-बार एह् घोख, निँ पचदी औतर जानी,
                  एक दिन पवै ज़रूर, सने सूद परतानी।
                  सिक्खमत अनमोल, अज्ज लै गंढी बन्नी,
                 आदर-मान बस्स, खाइयै लप्पर-खन्नी।
                                                  ( सफा-21 )
     विज्ञानक जुगै च आदमी इन्ना सोह्ल ते आलसी होई गेदा ऎ जेह्डा कम्म पैह्ले हत्थै कन्नै करदा हा उ'ऎ हुन एक बटन दबाने कन्नै होई जंदा ऎ। ओह्दे कोल समेँ दी बडी थोढ होई गेदी ऎ जि'नेँ रिश्तेँ गी अपने दुक्खै-सुक्खै दे दुखडे चिट्ठी-तारेँ राहेँ खोल्लियै बखान करदा हा, उ'ऎ हून टैलीफून राहेँ व्यक्त करदा ऎ जेह्डा उब्भी हून चलामेँ होई गेदे न।टैलीफून ने बी बोजेँ च जगाड बनाई लेदी ऎ जित्थै बी बैठे दा होँदा ऎ माह्नू, उत्थै गै उसी चंगा माडा सनेहा मिली जंदा ऎ:-
              तज्जे चिट्ठी-तार, खत, सेपे टेलीफून,
               कल्लै तक हे बैठमेँ, चले चलामेँ हून।
               चले चलामेँ हून, फि'रन सब छाती लाई
               खबर घरै दी देन, भरी सभा इच्च, जाई,
               लिखी सनेह् बी देन, सदा हुकमै दे बज्जे,
                बटन दबाने सैह्ल कश्ट, लिखने दे तज्जे।
                                       ( सफा-42 )
      इत्थूं तगर जे कलजुगै च माह्नू दी मत गै मारन गेदी ऎ कवि आक्खदा ऎ जे माह्नू भलखोई जन गेदा ऎ। उसनै गौ सेवा छोडियै ते कुत्तेँ दी टैह्ल सेवा शुरू करी लेदी ऎ। अज्ज गमां भुक्खियां मरां दियां न ते कुत्ते बिस्कुटां खाऽ दे न। जि'यां:-
               लखदे गे भलखोई न, कलयुगियेँ इंसान,
                गौ सेवा गी तज्जियै, कुत्तेँ टैह्ल कमान।
               कुत्तेँ टैह्ल कमान, बिस्कुटां, मास खलाई,
               ग्हांदे फ्ही वे-गुरे, दुआर पराए जाई।
               गमां भुक्खियां सुढन, रूग्ग भर भोऎ उगदे,
               अमरत तुल्ला दुद्ध, पीऎ भुल्ली गे लगद।
                                              ( सफा-61 )         
    कवि ने इस कुंडलियेँ दे संग्रैह् च बे-जुबान पशु-पैँछियेँ दी बी पैरबी कीती दी ऎ जे बोल्ली नेईँ सकदे ते इंसान इंदा नजायज फैदा लैँदा ऎ।कीजे एह् कुसैगी अपना दुक्ख नेईँ सनाई सकदे। इसकरी जिसलै माह्नू दा जरम-ध्याड़ा जां कोई होर शुभ-कारज होँदा ऎ। उसलै इ'नेँ  पशु-पैँछियेँ दी कुर्बानी दिंदे न। कुक्कड ते बक्करे इस करी निम्मोझान होई जंदे न कीजे उंदा कुर्कन होने दा ध्याड़ा आई जंदा ऎ पर लोक खाइयै इक-दूएं गी मबारखवाद दिँदे न:-
                   जरम-ध्याड़ा माह्नू दा, होन पशु कुर्बान,
                   बकरे भाऽ दा न्हेर पे, कुक्कड निम्मोझान।
                   कुक्कड निम्मोझान, सुनेँ निँ कोई फर्याद,
         बडे सुआदे खान, फ्ही देन मबारकवाद।
                  कुक्कड-बकरेँ सोग, जां उंदा मरन-ध्याड़ा,
                   जदूं-जदूं बी अवै, माह्नू दा जन्म-ध्याड़ा।
                                                   ( सफा-60 )
    कवि गी डुग्गर बसनीक होने दा फक्र ऎ। ओह् अपने डुग्गर देसै पर जान-कुर्बान करी देना चांह्दा ऎ। ओह्दा मन्नना ऎ जे जान कुर्बान करियै बी इस देसै दा कर्ज नेईँ तोआरेआ जाई सकदा ऎ।
              डुग्गर दा बसनीक औँ, डुग्गर मेरी जान,
              म्हान ऎ मीँ, होने दा, डुग्गर दी संतान।
              डुग्गर दी संतान, मिगी थ्होई ऎ पंछान,
       करा जिंद कुर्बान, बी नेईँ, उल्लै सहान।
             औँ जारेँ दा जार, बैरियै ते अति उग्गर,
             नेहा होर निँ थाह्‍र, जनेहा मेरा डुग्गर।
                                          ( सफा-36 )
    खीरै च इ'यै आक्खेआ जाई सकदा ऎ जे एह् कुंडलियेँ दे संग्रैह् भाशा दी द्रिश्टी कन्नै बी सराह्नेजोग ऎ ते इस पोथी दा डोगरी साहित्य च सुआगत ऎ।
                                                               ----------------------
                                                  Dr. Chanchal Bhasin

                                                  Lecturer Dogri 

Tuesday, July 16, 2013

सोच-बिचार

            सोच-बिचार                                                                                                                                                                                       भाशा च    बरतोने आह्ले ओह् शब्द जिंदे कन्नै साहित्य दी निग्गरता ते पुखता दा प्रमाण मिलदा ऐ यानि खुआन, मुहावरे, लकोक्तियां, बुझारतां आदि पर अज्ज इंदा दम घटोंदा सेई होवा' दा ऐ  । इ'नेंगी बरतने आह्ले लोक बड़े घट्ट न। पराने समें च लोक इ'नेंगी अपने गूढ़ तजरबें कन्नै घड़दे-बनांदे हे पर अज्ज लोकें कोल  समां नेईं जिसकरी  एह् विरासत मुकदी जा  करदी ऐ । साहित्यकार बी इंदी बरतून ना मात्तर गै करा' दे न । जिसकरी भाशा दा अपना असितत्व गुआचा दा ऐ । अज्ज लोड़ ऐ इस बक्खी ध्यान देने दी ते नौजुआन पीढ़ी गी अपनी भाशा ते संस्कृति कन्नै पंशान  करोआने  दी जे इस अनमोल खजाने गी साम्भी रक्खन ।                                                                                                                                     

Thursday, July 11, 2013

साहित्य अकादमी नमीं दिल्ली आसेआ घोशत डोगरी पुस्तक पुरस्कार:-1970-2012


       साहित्य अकादमी नमीं दिल्ली आसेआ घोशत                               डोगरी पुस्तक पुरस्कार  1970-2012           
क्रम
    कताब
    लेखक दा नां
साहित्य विधा
व’रा
1
नीला अम्बर काले बद्दल
नरेन्द्र खजूरिया
क्हानी संग्रैह
1970
2
मेरी कवता मेरे गीत
पदमा सचदेव
कवता संग्रैह
1971
3
फुल्ल बिना डाह्ली
श्रीवत्स विकल
उपन्यास
1972
4
दुद्ध, लहू, ज़ैहर
मदन मोहन शर्मा
क्हानी संग्रैह
1974
5
मेरे डोगरी गीत
कृष्ण स्मैलपुरी
कवता संग्रैह
1975
6
बदनामी दी छां
राम नाथ शास्त्री
क्हानी संग्रैह
1976
7
में मेले रा जानू
केहरि सिंह मधुकर
कवता संग्रैह
1977
8
सांझी धरती बक्खले माह्नू
नरसिंह देव जम्वाल
उपन्यास
1978
9
नंगा रूक्ख
ओ॰पी॰ शर्मा सारथी
उपन्यास
1979
10
घर
कुंवर वियोगी
कवता संग्रैह
1980
11
इक शैहर यादें दा
जितेंदर उधमपुरी
कवता संग्रैह
1981
12
कैदी
देशबंधू डोगरा नूतन
उपन्यास
1982
13
आले
वेद राही
क्हानी संग्रैह
1983
14
गमले दे कैक्टस
शिव राम दीप
कवता संग्रैह
1984
15
अयोध्या
दीनू भाई पन्त
नाटक
1985
16
सुन्ने दी चिड़ी
 डॉ॰ ओम गोस्वामी
क्हानी संग्रैह
1986
17
वेद्दन धरती दी 
प्रकाश प्रेमी
महाकाव्य
1987
18
रत्तू दा चानन
राम लाल शर्मा
कवता संग्रैह
1988
19
सोध समुंदरै दी
मोहन लाल सपोलिया
कवता संग्रैह
1989
20
जीवन लैहरां
तारा स्मैलपुरी
कवता संग्रैह
1990
21
अपनी डफली अपना राग
मोहन सिंह
नाटक
1991
22
जो तेरे मन-चित लग्गी जा
यश शर्मा
कवता संग्रैह
1992
23
बुड्ढ सुहागन
जितेंदर शर्मा
नाटक
1994
24
लालसा
अभिशाप
कवता संग्रैह
1995
25
बद्द्ली कलावे
ज्ञानेश्वर
कवता संग्रैह
1996
26
बक्खरे-बक्खरे सच्च
शिव देव सिंह सुशील
उपन्यास
1997
27
मांगवी पशाकड़ी
कुलदीप सिंह जिंदराहिया
कवता संग्रैह
1999
28
मील पत्थर
बंधु शर्मा
क्हानी संग्रैह
2000
29
निग्घे रंग
वीरेन्दर केसर
कवता संग्रैह
2001
30
त्रिप-त्रिप चेते
ओम विद्यार्थी
यात्रा लेख
2002
31
झुल्ल बढ़ा देआ पत्तरा
अश्वनी शर्मा
कवता संग्रैह
2003
32
चेतें दी चितकबरी
शिव नाथ
निबंध संग्रैह
2004
33
ढलदी धुप्पै दा सेक
कृष्ण शर्मा
क्हानी संग्रैह
2005
34
कोरे काकल कोरियां तलियां
दर्शन दर्शी
कवता संग्रैह
2006
35
महात्मा विदुर
ज्ञान चंद पगोच
महाकाव्य
2007
36
चेतें दी रोह्ल
चंपा शर्मा
कवता संग्रैह
2008
37
गीत सरोवर
प्रदुमन सिंह जिन्द्रहिया
कवता संग्रैह
2009
38
पंदरां क्हानियां
मनोज
क्हानी संग्रैह
2010
39
चेते दियां गलियां
ललित मगोत्रा
निबंध संग्रैह
2011
40
टिम-टिम करदे तारे
बाल कृष्ण भौरा
कवता संग्रैह
2012
                                                   डॉ चंचल भसीन