‘अक्षर’
कभी तुझे याद नहीं किया
क्योंकि तू भूला ही नहीं
मेरी कविता, ग़ज़ल, कहानी में तुम
किसी न किसी
रूप में उतर ही
आते हो
अक्षरों में लिपटे,
शब्दों के अर्थों से
झांकते
शरारतें करते दिख
जाते हो
में लिखूँ या न लिखूँ
पर
तुम मेरी क़लम पे सवार हो
यह मैं नहीं, सब मानते हैं।
( डॉ. चंचल भसीन )
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