‘वो दिन’
बहुत याद आते हैं
मुझे वो दिन
जाने क्यूं?
जब गली मोहल्ले की
चाची, मामी, मासी,
कान से पकड़कर
मुँह में गाली फुसफुसाते हुए
उलाहना देने आती
और
माँ के सामने खड़ा कर देतीं
माँ का देखना और आँखों आँखों
से ही
खाल उधेड़ देना
सहमकर बैठ जाना
चाची, मामी, मासी के जाते ही
पुचकारना
बालों को सबांरना
गले लगाकर
अपनी आँखें भी गीली कर लेना
याद आते हैं वो दिन
जाने क्यूं
पर आते हैं।
(डॉ. चंचल भसीन)
बहुत याद आते हैं
मुझे वो दिन
जाने क्यूं?
जब गली मोहल्ले की
चाची, मामी, मासी,
कान से पकड़कर
मुँह में गाली फुसफुसाते हुए
उलाहना देने आती
और
माँ के सामने खड़ा कर देतीं
माँ का देखना और आँखों आँखों
से ही
खाल उधेड़ देना
सहमकर बैठ जाना
चाची, मामी, मासी के जाते ही
पुचकारना
बालों को सबांरना
गले लगाकर
अपनी आँखें भी गीली कर लेना
याद आते हैं वो दिन
जाने क्यूं
पर आते हैं।
(डॉ. चंचल भसीन)
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