Thursday, May 7, 2015

चुपके से ( डॉ. चंचल भसीन )

        चुपके से 
तेरा यूँ चुपके से ज़िंदगी में आना
मुझे खिँझाना 
मुझे रिझाना
मुझे खेलाना
मुझे सताना
मुझे मनाना 
अच्छा लगता है।
माना ज़िंदगी तो पहले भी थी
सूखे पत्तों जैसे 
हवा के 
झोंकों से भी डरती
तिड़तिड़ करती 
टूटती जुड़ती 
बिखरती सँभलती 
अब अच्छा लगता है।
अपने में तुझको पाती हूँ 
रूह में ख़ुशबू तेरी
दिल में धड़कन तेरी
आँखों में इंतजारी तेरी 
जुबां पे नाम तेरा 
कानों में गूँजते बोल तेरे 
अच्छा लगता है।
    ( डॉ. चंचल भसीन )

No comments:

Post a Comment