व्यापार
मूल-शिवदेव सिंह सुशील
अनुवादक-डॉ. चंचल भसीन
सभागार में संगीत की महफ़िल चल रही थी। गाने वाले शहर के नये कलाकार थे। उनके प्रोत्साहन के लिए एक सभा ने यह कार्यक्रम रखा था और इस कार्यक्रम में मुख्य मेहमान के तौर पर एक मंत्री को लाया गया था ।
जैसे-जैसे संगीत तेज होता जाता सभागार में कलाकारों कि आवाजें भी बढ़ती जा रही थी। मंत्री उनके सुर में सुर मिलकर मन ही मन में गुनगुना कर पूरी तरह नंद उठाने की कोशिश कर रहे थे ।
सभा के प्रधान जब मंत्री को लेने के लिए गेट के बाहर खड़े थे तब मंत्री ने कार से उतरते उनसे हाथ मिलाया और कहा-“यार आज बहुत बुरा हाल है। सुबह से बातें कर-कर के दिमाग खुश्क हो गया है। बढ़िया-बढ़िया गीत सुनाओ ताकि थकाबट दूर हो जाए और सरुर आ जाए।“
“जनाब आप फिकर न करें पूरा कार्यक्रम आप की रूचि के मुताबिक़ ही रखा है।“
“हमें पता है कि आज आप बहुत थके हुए हो हमारे लोग भी जान खा लेते है।“ सभा के प्रधान के साथ चल रहे किसी दुसरे व्यक्ति ने कहा था वह किसी दफ्तर का आफिसर था ।
“हाँ, यार आज ऐसे ही हो गया पूरा दिन ।
“ मंत्री पहले सीधे स्टेज पर गये दीप प्रजल्लित करके कार्यक्रम का शुभारम्भ किया, फिर स्टेज के नीचे आ गये और प्रथम पंक्ति में बैठ गये। मंत्री के चेले-चांटों को शायद पहले ही पता चल गया था, इसलिए वे मंत्री के आने से पहले ही सभागार में आकर अपनी सीटों पर बैठ गये थे और उनके आते ही वे तालियाँ बजकर उनका स्वागत करने लगे। प्रथम पंक्तिसे शुरू हुए तालियाँ पूरे हाल में गूंजने लग गई ।
मंत्री प्रसन्न थे।
उन्हें खुश देखकर उनके चले उनसे भी ज्यादा खुश हो गये। सभा के प्रधान इसलिए खुश हो रहे थे कि मंत्री का मन आधा पहले ही खुश हो गया बाकी गीत और संगीत तो अभी था ही ।
चलते कार्यक्रम में एक औरत तीव्र गति से आई और मंत्री के समीप खड़ी हो गई। मंत्री के पास बैठे सभा के प्रधान ने उसको पहचानते हुए अपनी सीट खाली कि और उस औरत को वहां बिठाया। असल में उस औरत कि एहमियत का प्रधान को पता था और वह जानता था इस जगहपर बैठ कर औरत और मंत्री दोनों खुश हो जायंगे। असल में वो मंत्री को खुश करना चहता था तो इसलिए वह औरत को नाराज नहीं कर सकता था यही कारण था कि उसने अपनी जगह पर उस औरत को बैठने के लिए कहा था ।
कुछ समय तक वो औरत गीतों के आनंद लेने का नाटक करती रही, पर असल में उसका ध्यान पूरी तरह मंत्री पर था। अगर उसका बस चलता तो वो उसी समय मंत्री को ले जाती, उसे इस बात का पता है कि मंत्री को गीत-संगीत बहुत ज्यादा पसंद है। इसलिए उस हाल में बैठना उसकी मज़बूरी थी । पर चुप भी कितनी देर रहना था? आखिर उसने मंत्री के साथ बातें करना शुरू कर दी-“आज आप पुरे समय पर पहुंचे हुए लगते हो।“
“हाँ, सोचा अपनी कुछ पुरानीआदतें बदलूं।“
“समय पर पहुंचना अच्छी आदत है खासतौर पर मंत्री लोगों को समय पर पहुंचना ही चाहिए।“ वो पुरे चापलूस अंदाज में बोल रही थी ।
“हमारे पीछे तो वैसे भी लोग हाथ धोकर पड़े होते है।“
“लोगों का क्या है, लोग तो कहते रहते है।“
“हम कौन सी परवाह करते है किसी की।“
“करनी भी नहीं चाहिए ।“
इतनी देर में एक और गीत गाने वाली आई। इस दौरान मंत्री अ हाथ उस औरत के हाथ के ऊपर था और वह आहिस्ता-आहिस्ता अपनी अंगुलियाँ उसकी तली पर फेर रहे थे। औरत का झुकाब मंत्री की तरफ कुछ ज्यादा हो गया ।
कार्यक्रम काफी समय तक चलता रहा। आयोजक इस बात से ज्यादा खुश थे कि मंत्री को उनका कार्यक्रम पसंद आ रहा है। उनका मकसद भी मंत्री को खुस करना ही था। ताकि उनकी सभा के रुके कार्य हो सकें ।
“इसके पैरंत कहीं और तो नहीं जाना?” औरत ने द्बारा बात को दोहराते हुए पूछा।““नहीं, क्या बात--?”“मुझे लगता, आप भूल गए हो।“ उसने गुस्सा दिखते हुए कहा ।
“मुझे याद नहीं आ रहा, कुछ सुनाओ तो सही।“
“अ---------आज के लिए आप ने कहा था कि ---------।“ और उसने मंत्री के हाथ पर ।
“ठीक-ठीक अभी याद आ गया । असल में काम का बोझ इतना है कि ज्यादा बातें दिमाग से निकल जाती है।“
असल में मंत्री को सब कुछ याद था। उसने सताने के लिए यह नाटक किया था। वह बहुत बार ऐसा करते और आदमी का मजाक उड़ाते थे। मजाक करने और बातों में बातें डालना उनकी पुरानी आदत थी ।
“चलो शुक्र है आप को याद तो आया।““हां, यहाँ से फारग हो जाते है और सीधे चले जाना है, बाकी कार्यक्रम सब रद्द।“
“अभी और भी कहीं जाना था क्या?”
“हाँ जाना तो था, पर अब नहीं हम आपको नाराज नहीं कर सकते ।“ मंत्री ने पूरा जोर लगाकर उस औरत के हाथ को दबाया ।
इतनी देर में कार्यक्रम खत्म हो गया। सभा के प्रधान और एक-दो और आदमी मंत्री को स्टेज तक लेकर गये थे। मंत्री जी ने अपना भाषण दिया कलाकारों को सम्मानित किया और सभागार से बाहर चले गए ।
वो और अब मंत्री की कार में गई थी ।
मंत्री जी की कार दूर एक डाक-बंगले में रुकी थी।बंगले में उनका स्वागत एक आफिसर ने किया। वो पहले ही वहां पर पंहुच चुका था ।
बाहर अँधेरा होना शुरू हो गया था बंगले के एक कमरे में रोशनी जगमगाने लगी थी। मंत्री के हाने-पीने का सामान उस कमरे ऐ पड़ा था यहाँ आए हुए आफिसर ने पूरा किया था। क्योकि वो पहले भी वहां पर आ चुका था इसलिए मंत्री की सारी जरूरतों का उसे पता था। उनका यहाँ आने का जब भी प्रोग्राम बनता, इसी आफिसर की खास तैनाती की जाती थी ।
पर वो उस कमरे में बहुत कम जाता था। उनके पास सिर्फ डाक-बंगले का चोकीदार ही जाता था। अंदर से जब भी घंटी बजती चोकीदार ही जाता और मंत्री की जरूरत पूरी करता ।
वो आफिसर बड़े साहिब का खास चहेता था और इसलिए हर बार उसी कि तैनाती होती थी क्योकि बड़े साहिब की मर्जी मुताबिक़ काम करने से उसका स्वार्थ भी सिद्थ हो जाता था। इसलिए बड़े साहिब का काम वो बड़े चाव से करता था। उसने उस चौकीदार को अपनी मुट्ठी में किया हुआ था कि इस बात के लिए लोगों को और अखबार वालों को पता न लगे ।
वो औरत भी इसी गैंग की सदस्य थी। वो पहले इस आफिसर की खास थी और इसके कार्य निकलवाने में मदद करती थी। फिर इस आफिसर ने उसे बड़े साहिब के पास पंहुचाया और वो बड़े साहिब की खास हो गई। फिर एक सीढ़ी और चढ़ी और तरक्की करते-करते मंत्री के पास पंहुची और अब मंत्री कि बड़ी ज्यादा खास हो गई है और इन दोनों आफिसरों को मंत्री से काम करवाना अब आसान हो गया है ।
वो इस औरत को काम बता देते और मंत्री से आफिसरों क मर्जी मुताबिक़ काम करवा लेती थी। काम चाहे मुश्किल या अनहोना क्यों नहीं हो मंत्री उसको ना नहीं करते थे ।
बड़ा आफिसर अपने मुताबिक़ अपने आफिसरों की तब्दीलियाँ करवाता जिस आफिसर को अपने पास रखता, उसको पहले दिन ही कह दिया जाता था-“मुझे बजन चाहिए, इसके बगैर किसी और बात की मेरे अंदर गुंजाइश नहीं है। आपको खास जगह पर बड़ी मुश्किल से पंहुचाया है। इसलिए समय बर्वाद किये बिना, अपने काम पर लग जाओ आप को काम करने में मुश्किल आती है तो मुझे बताओ, पर लक्ष्य में कमी नहीं आनी चाहिए। आपको फंडस में कोई कमी नहीं आएगी।
वो अपना लक्ष्य उस आफिसर बता देता फिर वो सभी ऐसा ही करते।
आफिसर कि इस मण्डली में पैसा, शराब से लेकर शबाब तक सब जायज था।
कुछ दिन पहले वो औरत मंत्री के पास गई थी, उसने फाइल पर हस्ताक्षर करते-करते एक बात कही थी-“नई फाइल के साथ कुछ न्या भी होना चाहिए।“ और उसके मुहं पर अजीब सी हंसी आ गई थी।
औरत मंत्री का इशारा समझ गई थी। यह भी समझ गई थी कि मंत्री की दिलचस्पी अब उसमें ज्यादा नहीं रह गई। इसके लिए कुछ और करना पड़ेगा।
“आप हुकूम करो सर—“
“अच्छा—।“
“हाँ सर, आपके लिए सब कुछ हाजिर है।“ उसके मुहं पर शैतानी हंसी फ़ैल गई थी।“
“मुझे इस बात का पता है पर मेरी पसंद के मुताबिक़ ही सब होना चाहिए।“
“आपको शिकायत का मौका नहीं देगें, सर।““अच्छा, ठीक है फिर ।"
“मंत्री ने फाइल उस औरत के हवाले कर दी थी। फिर वो औरत मंत्री का शुकरिया करके उस आफिसर कि कार में बैठकर बड़े आफिसर के पास गई थी और उसने मंत्री कि ख्वाहिश उसको सुना दी थी।
ठीक, तो अब स्वाद बदलना चाहिए-कोई बात नहीं यह भी हो जाएगा ।
फिर वो औरत को ऐसे देखता है जैसे कह रहा हो अब यह जिम्मेबारी भी तुम्हारे सिर पर है।
औरत जवाब में मुस्कराई थी।
उसकी मुस्कान में उसका जवाब छिपा था कि अगर पहले जिम्मेबारियां निभाई है तो आगे भी निभाएंगी।
पूरा इंतजाम हो जाने के उपरांत मंत्री को निमंत्रण दिया था ताकि फण्ड लेने वाली फाइल पर हस्ताक्षर हो सकें।
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मूल-शिवदेव सिंह सुशील
अनुवादक-डॉ. चंचल भसीन
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