आज के बदलते हुए समाज में शायद मनुष्य की क़ीमत कुछ नहीं रह गई है। जिन मानवीय कदरों-कीमतों को हमारे पुरखों ने, जिस पर समाज की नींव रखी थी, उन मूल्यों को हम कहीं दूर छोड़कर एक ऐसे समाज में प्रवेश कर रहे हैं जहां पर हमारी परम्परवादी रूढ़ीगत मान्यताएँ टूट रही हैं- रिश्ते-नाते बिगड़ते जा रहे हैं। ऐसे समय में मनुष्य अपने-आप से कितना अलग होकर अपनी आकृति को पहचान पाता है यही आज के समाज के आदमी की कथा है।
जिंदगी क्या है। किसे कहते हैं क्यों कहते हैं। इसकी खोज में ऋषि मुनि वैज्ञानिक लाखों लोग लगे रहते हैं। इसमें कुछ खोजा जा सकता है संपूर्ण कोई नहीं जान पाता। काल और परिस्थितियों के अनुसार अच्छी या बुरी परिभाषाएं बदलती रहती है। व्यक्ति के जीवन जीने के उद्देश्य कई हो सकते है, जैसे- पैसा कमाना, कुछ बनना, कुछ बड़ा करना आदी इत्यादि। लेकिन जीवन जीने का अर्थ यही नही होता, जीवन जीने का अर्थ है हम किसके लिए इस दुनिया में आए और क्या वजह है की हमें यह जीवन मिला।
दरअसल, जीवन एक व्यवस्था है। ऐसी व्यवस्था, जो जड़ नहीं चेतन है। स्थिर नहीं, गतिमान है। इसमें लगातार बदलाव भी होने हैं। जिंदगी की अपनी एक फिलासफी है, यानी जीवन-दर्शन। सनातन सत्य के कुछ सूत्र, जो बताते हैं कि जीवन की अर्थवत्ता किन बातों में है। ये सूत्र हमारी जड़ों में हैं। जीवन के मंत्र ऋचाओं से लेकर संगीत के नाद तक समाहित हैं। हम इन्हें कई बार समझ लेते हैं, ग्रहण कर पाते हैं तो कहीं-कहीं भटक जाते हैं और जब-जब ऐसा होता है, जिंदगी की खूबसूरती गुम हो जाती है। हम केवल घर को ही देखते रहेंगे तो बहुत पिछड़ जाएंगे और केवल बाहर को देखते रहेंगे तो टूट जाएंगे। मकान की नींव देखे बगैर मंजिलें बना लेना खतरनाक है, पर अगर नींव मजबूत है और फिर मंजिल नहीं बनाते तो ठीक नहीं है। केवल अपना उपकार ही नहीं परोपकार भी करना है। अपने लिए नहीं दूसरों के लिए भी जीना है। यह हमारा फ़र्ज़ भी है और ऋण भी, जो हमें समाज और अपनी मातृभूमि का चुकाना है।
भगवान परशुराम ने यही बात भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र देते हुए कही थी कि वासुदेव कृष्ण, तुम बहुत माखन खा चुके, बहुत लीलाएँ कर चुके, बहुत बांसुरी बजा चुके, अब वह करो जिसके लिए तुम धरती पर आए हो। परशुराम के ये शब्द जीवन की अपेक्षा को न केवल उद्घाटित करते हैं, बल्कि जीवन की सच्चाइयों की परत-दर-परत खोलकर रख देते हैं। हम चिंतन के हर मोड़ पर कई भ्रम पाल लेते हैं। प्रतिक्षण और हर अवसर का महत्व जिसने भी नजरअंदाज किया, उसने उपलब्धि को दूर कर दिया। नियति एक बार एक ही क्षण देती है और दूसरा क्षण देने से पहले उसे वापस ले लेती है। जीवन का अर्थ है अपनी पूर्ण संभावनाओं के साथ खिलकर जीना। अपनी संभावनाओं का आनंद लेते हुए समाज और प्रकृति के संवर्धन और संरक्षण में सहयोग देना।
पुस्तक सुविचार संग्रह:
श्री चूनी लाल शर्मा डोगरी, हिंदी और उर्दू के वरिष्ठ साहित्यकार हैं जिन्होंने जम्मू-कश्मीर स्कूल शिक्षा विभाग और रेडियो जम्मू में अपनी सेवाएँ प्रधान की और रेडियो जम्मू से बतौर प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव सेवा निवृत्त हो गए। इन्होंने रेडियो जम्मू में कार्यरत रहते हुए हिंदी, डोगरी और उर्दू भाषाओं में साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं समसामयिक विषयों पर लेखन, संपादन तथा प्रस्तुतीकरण का कार्य किया। इसके अतिरिक्त, रेडियो रूपक, रेडियो दस्तावेज़ी वृत्तचित्रात्मक रूपक, एवं रेडियो रिपोर्टस के क्षेत्र में कार्य किया। आकाशवाणी के राष्ट्रीय चैनल्स हेतु अनेक रूपक लिखने और निर्माण करने का सौभाग्य भी इन्हें प्राप्त है। इन की अब तक सुविचार संग्रह से पहले दो अनुवाद की पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं- पहली पुस्तक सैय्यद मुहम्मद अशरफ़ का कहानी संग्रह ‘वादे सबा का इंतिज़ार’ का डोगरी अनुवाद ‘पुरै दी निहालप’ और सुप्रसिद्ध पंजाबी की साहित्यकार अमृता प्रीतम की आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ का डोगरी में अनुवाद जिसे साहित्य अकादमी दिल्ली की ओर से प्रकाशित किया गया है। इस के अलावा कई भारतीय भाषाओं की कहानियों का डोगरी में अनुवाद डोगरी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुका हैं।
यह पुस्तक लेखक चूनी लाल शर्मा जी की तीसरी पुस्तक है। जो 150 विचारशील विचारों का संग्रह है। भारतीय संस्कृति, परम्पराओं और दर्शन पर आधारित है। जो विभिन्न धर्मों के पवित्र ग्रंथों में निहित हैं। विचारों के माध्यम से उठाए गए विषय पाठकों को सकारात्मक सोच और सही मार्ग अपनाने और उस पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। लेखक ने इन सुविचारों के विषयों को तीन भागों में बाँटा है-
पहला भाग:
सामान्य व्यावहारिक जीवन से सम्बन्धित विषय:
इस विषय के अंतर्गत 90 सुविचार, मानवीय मूल्यों, ईमानदारी, नैतिकता, सामाजिक मूल्यों, सादगी का मार्ग अपनाने दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करने पर ज़ोर दिया गया है। इन छोटे-छोटे सुविचारों में जीवन के गूढ़ रहस्य है जिसे अपनाने से जीवन को सुचारू रूप से चलाया जा सकता है। इन विचारों में-पराक्रम, विद्या, कृतज्ञता, नागरिक भावना, जागो रे जिन जागना, सहनशीलता, हमारे संस्कार, श्री राम की विनम्रता, नेकी से नेकनामी, पश्चाताप, एकांत आत्मचिंतन, जैसा आहार, बैसा विहार, हमारी सोच, रैदास जी का संत संदेश, करुणा, लोभ, प्रसन्नता, आदि।
संग्रह का पहला विचार ‘पराक्रम’ जिस का अर्थ शौर्य, बहादुरी अर्थात् जीवन की चुनौतियों का सामना करने का उत्साह है। लेखक ने राम चरित मानस के सुंदर काण्ड के माध्यम से पाठकों को समझाने का प्रयास किया हैः
“कादर मन कहूँ एक आधारा। दैव दैव आलसी पुकारा।”
अर्थात् कठिनाई का सामना पराक्रम से करना चाहिए न कि केवल प्रभु का नाम जपने से। कठिनाई का सामना न करना कमजोर मनोबल और आलस्य की निशानी है। भगवान श्री राम का आदर्श सिखाता है कि समय आने पर पराक्रम अवश्य दिखाना चाहिए। पराक्रम सभी में छिपी निडरता है जो इसे पहचान लेते है वे अवश्य रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को दूर करते जाते हैं। “नेकी से नेकनामी” अर्थ साफ़ है कि हम अच्छा करेंगे तो उसका परिणाम भी अच्छा होगा। हमारी भारतीय संस्कृति में सफल जीवन की कसौटी धन और संपत्ति नहीं बल्कि नेकी और परोपकार है। नेकी से नेकनामी और बदी से बदनामी मिलती है।
सुविचार नाम का विचार जिसमें लेखक ने रवीन्द्र नाथ टैगोर की परिभाषा से समझाने की कोशिश की हैः-
“सदा प्रसन्न रहो। इससे मस्तिष्क में सुविचार आते हैं तथा चित्त शुभ कर्मों की ओर लगा रहता है।”
इसमें कोई दो मत नहीं है कि विचारों से ही व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन आता है सुविचार अर्थात् शुभ विचार, सुंदर विचार अच्छे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। व्यक्ति को निराशा से निकालकर आशा में ले जाते हैं आशा का दामन थामने वाला व्यक्ति आशावादी होता है। प्रगतिवादी होता है। ऐसा व्यक्ति सकारात्मक सोच के साथ चलता है और अपने मार्ग की कठिन से कठिन बाधाओं को दूर करके अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल हो जाता है। सकारात्मक व्यक्ति रचनात्मक कार्य करता है और प्रसन्न रहता है। अर्थात् सुख की इच्छा करो अपने लिए भी तथा दूसरों के लिए भी। ऐसे और भी उपदेशात्मक विचार है।
दूसरा भाग:
दिवस-अवसर विशेष:
इसमें 35 अलग-अलग धार्मिक गुरुओं के सहित भारतीय महापुरुषों के विचारों को संकलित किया गया है। ये सभी विषय समाज में समावेश, सह-अस्तित्व, शांति और सद्भाव का संदेश देते हैं जैसेः- श्री गुरु नानक देव जी का संदेश, जिन्होंने अपनी वाणी के माध्यम से आध्यात्मिक संदेश दिए उसे भक्ति, मानवता तथा एक ईश्वर बात की बेजोड़ धारा कहा जाता जा सकता है। उनके जन्म से पहले समाज जातिवाद, अंध विश्वास तथा धार्मिक संकीर्णताओं में उलझा हुआ था। इन्होंने जाति व्यवस्था, सामाजिक बुराइयों, अशांति, बैर-विरोध को नष्ट करके एक सभ्य समाज की स्थापना की। इन्होंने किरत करना और वंड छकना का आदर्श मंत्र दिया। यानि मेहनत की कमाई करना तथा बाँटकर खाना।
पूज्य श्रीगणेश- हमारी संस्कृति में कोई भी शुभ कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त देखा विचारा जाता है और जब कार्य आरंभ करना हो तो पूजा पाठ से किया जाता है। इस समय सर्वप्रथम जिस देव को आमंत्रित किया तथा पूजा जाता है, वह है गणपति। जहाँ तक कि हम दैनिक पूजन तथा चिंतन से पूर्व भी गणपति गणेश का स्मरण करते हैं। जो विध्न-बाधाओं के हर्ता है, वुद्धि दाता, सुख समृद्धि तथा सौभाग्य के स्वामी हैं, देव है। वे प्रथम पूज्य इसलिए हैं कि हमारी सृष्टि अलग-अलग ऊर्जाओं का समूह माना जाता है। इन ऊर्जाओं पर यदि किसी का नियंत्रण है न हो तो दृष्टि में उतर- पुथल मच सकती है। गणेश का शाब्दिक अर्थ है धन+ईश गणों के स्वामी। गणपति सर्वव्यापी है, सर्वोच्च चेतना है। पर आज की युवा पीढ़ी ये सब भूलती जा रही है। वे पश्चिमी सभ्यता में पूरी तरह से डूब चुकी है। जिससे अपने संस्कारों का हनन हो रहा है।
व्यक्ति की पहचान उसके कार्यों से होती है। देश और समाज के लिए महान कार्य करने वाला व्यक्ति ही महान कहलाने का अधिकारी बनता है। आधुनिक काल जिन महानुभावों ने भारत को नवचेतना, नई दिशा नई ऊर्जा दी उनमें बड़ा नाम डॉ. अंबेडकर का भी है। डॉक्टर अम्बेडकर एक विधिवेता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ तथा एक समाज सुधारक के रूप में जाने जाते हैं। उनका कथन है:
“जीवन लंबा होने की अपेक्षा महान होना चाहिए।” अर्थात् जीवन में कुछ सार्थक होना चाहिए, जिस से समाज का भला हो सके और आप के बाद भी समाज आप को याद रखे। ऐसे ही कई और भी विचार इस विषय के अंतर्गत रखे गए है जैसे-
बच्चे मन के सच्चे,( बाल दिवस ) नारी शक्ति के सम्मान का पर्व नवरात्रि, शक्ति उपासना का पर्व नवरात्रि, भगवान महावीर का संदेश, विजय दशमी, श्रद्धा और प्रेम का पर्व- भाई दूज, संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर, महाराजा हरि सिंह, याद-ए-कर्बला-मुहर्रम, प्रेम प्यार के मसीहा यीशु मसीह, माह-ए-रमज़ान, हज़रत मुहम्मद साहब का पैग़ाम, हज़रत मुहम्मद साहब ने फरमाया, गुड फ़्राइडे का संदेश, हमारा गणतंत्र, लीला धर श्रीकृष्ण, रक्षाबंधन, कारगिल के शहीदों को नमन, नाग पंचमी, राष्ट्रीय एकता के प्रतीक पुरुष सरदार पटेल, नव वर्ष हमें सिखाता है, राष्ट्रभाषा हिन्दी, बुद्ध वाणी, पुण्य एवं स्वास्थ्यवर्धक तुलसी, मानवीय मूल्यों के रक्षक गुरु तेग़ बहादुर वगैरा-वगैरा ऐसे कई विषयों पर आधारित विचार इस भाग में संकलित हैं।
तीसरा भाग:
गांधी जी का जीवन दर्शन:
इसके अंतर्गत हैं 25 विचार, ये गांधीवादी विचारों और दर्शन पर आधारित हैं। जिसे अलग-अलग शीर्षकों से जैसे-गांधी जी की व्यवहारिकता, मानवता के पुजारी गांधी जी, और अधिक पाने की भूख, गांधी जी की नज़र में है-सच्चा धर्म, गांधी जी की दृष्टि में कर्मफल, जहाँ मानवता वहाँ गांधी, हमारे विचार हमारी पहचान, गांधी जी का शांति संदेश, भारत छोड़ो आंदोलन, गांधी जी की नज़र में सात पाप, बदलाव के बारे में गांधी जी का नज़रिया आदि कई और भी विचार।
ये समकालीन समाज के लिए प्रासंगिक है और भविष्य में भी समाज में प्रासंगिक होंगे। महात्मा गांधी ने कहा था कि मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा ईश्वर है और अहिंसा उसे पाने का साधन। यह वाक्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना पहले था। गांधी दर्शन भटके लोगों को रास्ता दिखाने का काम आज भी कर रहा है। संसार के हर कोने में तथा हर काल में उनकी विचारधारा हर इंसान को मानवता और राष्ट्र प्रेम का मार्ग दिखाती रहेगी।
आख़िर में, कहना चाहूंगी कि हिंदी साहित्य के पाठकों के लिए एक श्रेष्ठ पुस्तक है, जिसमें विभिन्न विषयों के विचारों को एक जगह समेट कर रखा गया है।यह लेखक के गहन शोध और परिश्रम का नतीजा है। हर वर्ग का पाठक इस पुस्तक को पढ़े क्योंकि इसमें बहुत ही विचारणीय विचार हैं। हर व्यक्ति को इसे अपने जीवन में अपनाने की ज़रूरत है। एक बार फिर लेखक को श्रेष्ठ कृति के लिए बहुत-बहुत बधाई।
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